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लेख: भाजपा चुनाव से बहुत पहले ही हार गयी थी सुजानपुर सीट, जानें कैसे

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Dhumal Lost Sujanpur must before current elections




Rubal Thakur

राजिंदर राणा जी का धूमल जी को हराना, हिमाचल की राजनीति में शायद की बात नहीं है, सबसे बड़ा उलटफेर है, सबसे बड़ी राजनैतिक घटना है। इसलिए है क्योंकि बहुत बड़ा बहुमत मिला है, और नेता चुनाव हार गया है। (शांता जी भी हारे, पर शांता जी उस समय हारे जब भाजपा के विपरीत परिस्थितियां थी।) 1998 में भाजपा सरकार से भी बड़ी राजनैतिक घटना, चलो छोड़ते है, उसका भी पूरा श्रेय मोदी जी को जाता है।

मुद्दे पे आते हैं। यह स्पष्ट करना आवयशक इसलिए हो जाता है क्योंकी बहुत सी भ्रांतियां फैलाई जा रही है, इसने ये कर दिया, उसने वोह कर दिया। लगता हैं प्यारों को अभी भी शर्म नहीं हैं। जो उलटफेर हुआ वह आज नहीं हुआ इसकी जो योजना है वह 2001 में बनी थी।

भाजपा ने 1967 में 3 सीटें जीती थी। तब से ही हमीरपुर भाजपा का गढ़ रहा है। देश में कहीं भी हारे पर हमीरपुर जरूर जीता जाता रहा। चाहे इंदिरा जी के निधन के बाद 1985 के चुनाव हो या 1993 के।
तो ऐसा क्या सुजानपुर में हुआ की मुख्यमंत्री ही चुनाव हार गए। बहुत से लोग सुजानपुर की जनता को दोष दे रहे हैं, इसलिए मुझे लिखना पड़ा क्योंकि मैं भी उसी क्षेत्र से आता हूँ, कुछ लोग गालियां दे रहे हैं, जरूर देनी चाहिए, पर मैं बताता हूँ किसे दो।

1. पहली बात 2012 में परिसीमन के बाद जो सुजानपुर हल्का बना, शायद प्रदेश का ही नहीं, देश का सबसे मजबूत भाजपा का क्षेत्र बना। लगभग 56 बूथ स्वर्गीय ठाकुर जगदेव चंद के हलके के आये और लगभग 46 बूथ उस समय के मुख्यमंत्री धूमल जी के। ज्ञात रहे की इन्हीं बूथों से धूमल जी पिछली बार 26000 मतों से विजयी हुए थे। तो इस बार तो घर वापिसी हुई है, (और मैं 99.99% यकीन हैं सुजानपुर की सीट पे भेजा नहीं गया हैं खुद के लिए ली गयी है। इसलिए ली गयी है क्योंकि राजिंदर राणा राजनैतिक रूप से उस इलाके में बहुत मजबूत हो रहे थे।) सीट चेंज नहीं हुई है। इसलिए ये पूछो की पिछली बार सीट चेंज क्यों की? 2012 में प्यारों ने नारा दिया था की “हमीरपुरा ते देर (देवर) राना कने सुजानपरा ते परजाई(भाभी)”।




2. दूसरा, सुजानपुर की जनता को गालियां देना ठीक नहीं है। जनता ने वही किया जो उसके नेता ने कहा। जायदा सोचने का तो विषय ही नहीं है, सीधा उतर है जो 2012 में भाजपा प्रत्याशी को हारने के लिए भेजे गए वह पुरे वापस नहीं आये। इसमें जनता और कार्यकर्ताओं का क्या दोष?

3. एक कहावत है “Trend is Friend”। 2012 के चुनाव के बाद 2014 के चुनाव में मोदी लहर में जहां से हज़ारों की लीड होती थी लोकसभा प्रत्याशी को सिर्फ 3800 की बढ़त मिली और विधानसभा प्रत्याशी सिर्फ 500 वोटों से जीत। जहां कुछ ने सोच लिया अब सब खत्म। वहीँ शिमला में एक बड़ा राजनीतिज्ञ इस Trend को समझ चूका था। इसलिए Free Hand दिया गया और हर काम किये गए। इसमें राजिंदर राणा जी भी बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने भी इसका पूरा फायदा भी उठाया।

सुजानपुर 2017 में नहीं हारा गया, ये पटकथा जिसके लिए लिखी गयी थी वहीं से इस बार एक चिराग उत्पन हो गया। असल में चुनाव और क्षेत्र भाजपा 2012 में ही हार गयी थी। ये कभी न कभी होना ही था, समय इंतजार में था। अभी नहीं होता, तो 2019 में होता। थोड़ा सा ये भी सोचो, की अगर मुख्यमंत्री घोषित नहीं होते तो क्या होता?

2012 में कई भाजपा के पदाधिकारी भी गवाह रहे होंगे, जब एक राजनीतिज्ञ चुनाव के बीच में सुजानपुर में आये थे और तब की प्रत्याशी उर्मिल ठाकुर ने उनसे कहा था “मैंने आपको पहले ही कहा था मुझे हमीरपुर से टिकट दो, ……जी, भाजपा का गढ़ समाप्त कर दिया गया है।”




कभी कभी हम ये सोचते हैं की ये मैंने किया, मेरी वजह से हुआ, उसने किया, उसकी वजह से हुआ। बहुत सी चीजें हमारे हाथ में नहीं हैं, ठीक वैसे ही जैसे की हवा और धरती का घूमना।

जब कोई इंसान अपने लिए, अपने लोगों के लिए न्याय लेने के सक्षम नहीं होता, तो प्रकृति न्याय करती हैं।

NOTE: लेख में व्यक्त किये विचार लेखक के निजी विचार हैं। इन्हे लेखक की फेसबुक वाल से लिया गया है।

Dhumal Lost Sujanpur much before the current elections

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